Tuesday, April 7, 2009

गुरु-नमस्कार

नमो अनादि ब्रह्म अरूप अनाम।
भई आप इच्छा रचे सर्व धाम।।
न जाने नाम कोई करे कौन ध्यानम्।
नमो ऽहं, नमो ऽहं, गुरु ही त्रिकालम् ।।1।।
नहीं वेद ब्रह्मा, नहीं विष्णु ईश।
नहीं पंच-तत्व, नहीं थे अहींश।।
नहीं जोत रूप, नहीं माया करालम्।
नमो ऽहं, नमो ऽहं, गुरु ही त्रिकालम्।।2।।
नहीं देव देवी, नहीं सूर्य प्रकाश।
नहीं चन्द्र तारा, नहीं कोई आकाश।।
न तो स्वर्ग, भूलोक नहीं पातालम्।
नमो ऽहं, नमो ऽहं, गुरु ही त्रिकालम्।।3।।
जहाँ आप इच्छा, मांही शब्द गाजे।
विदेह स्वरूप, अनूप विराजे।।
भई शब्द ते, सर्व लोके विशालम्।
नमो ऽहं, नमो ऽहं, गुरु ही त्रिकालम्।।4।।
तू हि सच्चिदानन्द, लोके प्रकाशा।
सदा सर्वदा हंस, करते विलासा।।
तहां आप से, आप प्रकट सुकालम्।
नमो ऽहं, नमो ऽहं, गुरु ही त्रिकालम्।।5।।
भयो तेज रूप, सभी विश्व काँट्यो।
गुरु जी, गुरु जी ही, सब सृष्टि जाप्यो।।
सुनी दीन वाणी, भये हैं दयालम्।
नमो ऽहं, नमो ऽहं, गुरु ही त्रिकालम्।।6।।
तभी नाथ नर रूप, अवनि सिधारे।
रख काल रूप, सभी को उभारे।।
महादीन दासे, सो करते कृतार्थम्।
नमो ऽहं, नमो ऽहं, गुरु ही त्रिकालम्।।7।।
करे कौन तेरी, प्रशंसा सुवानी।
थके विष्णु ब्रह्मा, महेश भवानी।।
थके शेष गण, नाथ वाणी विशालम्।
नमो ऽहं, नमो ऽहं, गुरु ही त्रिकालम्।।8।।
न काहू कहो नाथ, तुम पार पायो।
अनादि, अगम् और निगम् बतायो।।
तू ही निर्गुण, सगुण रूप धारणम्।
नमो ऽहं, नमो ऽहं, गुरु ही त्रिकालम्।।9।।
तू ही कोटि कोटिन्ह, ब्रह्माण्ड कीनो।
तू ही सर्व को, सर्वदा सुख दीनो।।
बसे सर्व में, सर्व रूप दयालम्।
नमो ऽहं, नमो ऽहं, गुरु ही त्रिकालम्।।10।।
सभी सन्त कारण, तो ही बतावें।
एक ही वेद ब्रह्मनाद, षठ-शास्त्रा गावें।।
जपे नाम तेरो, भजें जे विश्वेशरम्।
नमो ऽहं, नमो ऽहं, गुरु ही त्रिकालम्।।11।।
लहे ज्ञान-विज्ञान के बल्य-पुर।
महा मोह-माया रहे ताहीं दूर।।
लखे ता है डरिये, माँ ही चित्तकालम्।
नमो ऽहं, नमो ऽहं, गुरु ही त्रिकालम्।।12।।
विनय दास पफरियाद की चित्त दीजे।
प्रभुदास को दास, तो मोहे कीजे।।
सदा दीन के तुम, हरो दुःख उद्धारम्।
नमो ऽहं, नमो ऽहं, गुरु ही त्रिकालम्।।13।।
गुरु उग्रानन्द जी कहते हैं अगम कहानी।
सुनो रमेशचन्द्रानन्द तू बन ब्रह्म-ज्ञानी।।
योग से ही फटे है, काल के कपालम्।
नमो ऽहं, नमो ऽहं, गुरु ही त्रिकालम्।।14।।

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