Tuesday, April 7, 2009

गुरु चरण रज-वन्दना

हम धरा की धूलि हैं, गुरुदेव तुम आकाश हो।
हम तिमिर अज्ञान के, तुम ज्ञान के प्रकाश हो ।।
हम पथ-भ्रष्ट हो अज्ञानता की, आँधियों में बह गये।
मद मोह माया लोभ-वश, भक्ति किला सब ढह गये।।
इस भंवर जंजाल के तुम, एक कुशल संत्रास हो ।।
की भक्ति बिना, सब भत्तियाँ निःस्सार हैं।
माता-पिता और गुरु ही, सर्वस्व सर्वाधार हैं।।
गुरु दो अभय-ज्ञान हमको, पूर्ण हमारी आस हो ।।
सदा आश्रित रहें गुरु के, ईश्वर से ये मांगें भिक्षा।
करे मार्गदर्शन जीवन भर, गुरुदेव की पावन शिक्षा।।
रोम-रोम के अधिकारी तुम, जीवन की तुम श्वांस हो ।।
राज सुख से भी है सर्वोपरि, स्वर्ग सम गुरु की शरण।
हो सफल जीवन हमारा, यदि हों सुलभ गुरु के चरण।।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश हो तुम, गुरु जीवन के विश्वास हो ।।
तन रमा है ग्रहस्थ में, मन मगन है वैराग्य में।
आत्मा उलझती भँवर में, ज्ञान झुलसता आग में।।
इस भवसागर के मध्य गुरु, तुम केवट के प्रयास हो ।।
तन, मन, धन सर्वस्व समर्पित, इन गुरु चरणों की बेला में।
दे दो नाथ अब आश्रय हमको, शिष्य तो रहते गुरु-भक्ति में।।
परम शान्ति के श्रोत गुरुदेव, आप भत्तफों की शुभ आस हो ।।
प्रेमचन्द शर्मा और ब्रजनन्दन लाल भी यों कहने लगे।
रो-रोकर हम अश्रु बहाते, गुरु-चरण धूलि में हम रमने लगे।।
मुत्ति-धाम की हम करें, प्रार्थना, अब गुरुदेव हमारा पुनर्जन्म ना हो ।।

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