नमो नमः गुरु रूप को, आदि अन्त तेहि नाहीं।
सो साक्षी मम रूप है, तिस में संशय नाहीं।।
अविगत, अविनाशी, अचल, व्यापत रहियो सब मांही।
जो जाने अस रूप को, मिटे जगत भ्रम तांही।।
गंगा निकट है ग्राम भोजकट दरावर।
जिस पर योगी जन होत न्यौछावर।।
पावन भूमि में जन्म लेकर।
बड़े हुए गुरु को सब वुफछ देकर।।
रमेशचन्द्रानन्द मम् योगी गुरुदेव हैं।
आत्म चित्त जो मुनिवर मुनि हैं।।
योग युगत अरु कर्म-निष्ठ हैं।
अजर, अमर, सर्वज्ञ, समर्थ हैं।।
ऐसे गुरु-स्वरूप को, करके अर्पित अर्चना।
धन्य-धन्य पुकारती, भत्तफों की अन्र्तात्मा।।
Tuesday, April 7, 2009
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